Welcome to the desk of an Engineer......

For an optimist the glass is half full, for a pessimist it’s half empty, and for an engineer is twice bigger than necessary.

Thursday, February 3, 2011

...एक अनकही कहानी!

लिखना कभी उसका पैशन हुआ करता था.. कुछ लिखे बिना उसे जीना नहीं आता था, लिखना जैसे की उसके लिए सांस लेना जैसा था. कुछ कविता या नज़्म नहीं तो डायरी या फिर यूँ ही बेलौस बस लिखे जाना उसकी आदत सी थी. अगर वो कुछ पढता भी तो उसकी कलम उसके साथ होती थी. किताब पर वो कुछ नहीं लिखता था पर उसकी साफ़ शफ्फाक किताबों में रक्खी छोटी छोटी पर्चियों में उसकी समझ के अनुसार वो किताब पढ़ी जा सकती थी. उसके पर्स में हमेशा एक सफ़ेद पन्ना और जेब में एक कलम जरुर होती थी. पर अपने लिखे हुए को वो संभाल कर नहीं रखता था! ये भी उसकी सभी अजीब आदतों सी एक आदत थी. अपनी आदतों में बंधा हुआ  था, और अपनी आदतों से अलग कुछ करने में वो परेशान हो जाता  था, झुंझला जाता था.  एक बंधे बंधाये रूटीन में उसकी ज़िन्दगी चलती थी. बस इसी तरह जीना उसे आता था.....

 और फिर एक दिन उसकी ज़िन्दगी ने करवट ली, वक्त की डाली पर एक नयी कोंपल नए मौसम के साथ यूँ उगी की पूरी फिजा ही बदल गयी. मुस्कुराहटों के मौसम छा गए. अब अपनी खुली किताब सी ज़िन्दगी वो छिपाने लगा. उसे लगता की उसके जज्बे कोई उसके चहरे पर ही न पढ़ ले. और लिखना तो बस यूँ ही बंद हो गया. अब वो पढता भी तो कुछ लिखता नहीं की कोई कुछ अंदाजे न लगा ले. यूँ सबसे सब कुछ छिपा कर रखना भी उसकी आदत सी हो गई..अब वो सपनों में जीता था, उसके ख़्वाब उसकी अमानत थे..और वो अपने ख़्वाबों की दुनिया का सह्जादा था ..अब वो लिखता नहीं था, अपने शब्दों को खुद जीता था, वो एक जीती जागती कहानी बन ग़या था....एक अनकही कहानी!

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